Tuesday 24 May 2016

एक दादी है मेरी...थोड़ी सी जवान सी

एक दादी है मेरी
थोड़ी सी जवान है
डरता हूं कि
किसी की नज़र में तो नहीं है
नज़र उतारती थी
मेरे बचपन की हर रोज
आज मैं उतारना चाहता हूं
नजर उसकी
इसलिए कि
न लगे उसे किसी की नज़र
नहीं चाहता कि ले जाए कोई
उसको चुराकर
मेरी नज़रों से, यादों से
कहानियों से, किस्सों से
ज़िदगी के हिस्से से
बात होती है जब कभी
हंसकर रो देती है
सबकुछ कह देती है
जो जुटाया होता है उसने
मेरे लिए, बीती कॉल से
ज़ेहन में भर देती है वो ताज़गी
जो न किसी चार की पत्ती में
और न ही किसी बागान में
मैं हो जाता हूं जिंदा सा
फिर से...
मौत के करीब से लौटकर
आने जितनी खुशी समेटकर
आगे कुछ कहने, सुनने को
बचता ही नहीं
फिर क्या सुनोगे, कितना सुनोगे
जब कहना था, तब कहा नहीं
जब सुनना था, तब सुना नहीं
एक दादी होगी तुम्हारी भी
थोड़ी सी जवान सी
है न?

- प्रवीण दीक्षित

Monday 4 April 2016

पैसा के पीछे लोग इस हद तक भी पागल होते हैं, कभी सोचा न था !

दिल्ली में आयोजित 'द लग्जरी फेस्टिवल' का आखिरी दिन था और अपना वीकली आॅफ भी। निकल पड़े कुछ नया देखने। पुरानी नजर से। साथ मिला आजतक में कार्यरत हमारे साथी बृजेश बाबू का। वापसी के दौरान आईटीओ मेट्रो स्टेशन के पास हमने पानी की बोतल खरीदी और दो घूंट पानी गले के नीचे उतारा ही था कि तभी कैब वाले एक जनाब आ टपके। शायद दूर से तक रहे थे। उन्हें इस बात का साफ अंदाजा था कि बंदे कैब सर्विस लेते ही होंगे। हमारे नजदीक आए और बड़े कॉन्फिडेंस से अपने अकाउंट से एक ट्रिप रजिस्टर करने की गुजारिश की। बोले — 'भाई प्लीज एक ट्रिप ऐसे ही रजिस्टर कर दीजिए। मेरा 11 ट्रिप्स का दिनभर का कोटा पूरा हो जाएगा। मेरा टारगेट पूरा हो जाएगा और कैब कंपनी इसके एवज में 3 हजार रुपये हमारें अकाउंट में डाल देगी। सवेरे 4 बजे से गाड़ी घर से लेकर निकला हूं और रात के 8 बजने को हैं। इस वक्त तक महज 10 बुकिंग्स ही हो पाई हैं। आप ट्रिप रजिस्टर कर दीजिए, मैं आगे तीन—चार किलोमीटर तक गाड़ी ले जाकर घर पर खड़ी कर दूंगा।' हम लोग भी ठहरे कमजोर दिल वाले दयावान टाइप 'गधे'। हामी भर दी।
बृजेश बाबू ने अपने मोबाइल से तुरंत ही ट्रिप रजिस्टर कर दी। कैब वाले भाईसाहब का टार्गेट पूरा हो गया। टार्गेट पूरा होने का मैसेज उनके मोबाइल पर टूं टूं जैसे ही किया, उन्होंने हमारी तारीफ के पुल बांध दिए। कुछ ही मिनटों में दुनियाभर की सारी दुआएं दे डालीं। हमारे मन के पीछे वाले समंदर में फील गुड वाला इमोजी तैरने लगा। लगा कि चलो यार किसी के तो काम आ गए। अपना कुछ गया नहीं और दूसरे का भला हो गया। लेकिन उस वक्त तक हमें नहीं मालूम था कि हमारा यह परोपकार हमपर भारी पड़ने वाला है। वे जनाब इतने खुश थे कि उन्होंने हमें नजदीकी मेट्रो स्टेशन तक कैब से छोड़ने का आॅफर दिया, वो भी बिना पैसे लिए। गर्मी तो बेइंतहा थी ही, तो ऐसे में एसी कार में कुछ पल ही सही, बैठने को कौन नहीं बेताब होगा भला! हमने भी हामी भर दी और चल दिए।
लक्ष्मीनगर मेट्रो स्टेशन पर उतरने से कुछ पल पहले ही कैब वाले ड्राइवर साब ने एक बार और गुजारिश की। इस बार उन्होंने मुझसे अपने मोबाइल से एक और ट्रिप रजिस्टर करने को कहा। बोले — मेरा 3 हजार वाला तो टार्गेट पूरा हो ही गया है। लेकिन अगर आप भी एक ट्रिप रजिस्टर कर देंगे तो मुझे 500 रुपये बोनस में मिलेंगे! हमने भी हां कह दिया। लेकिन इस बीच उन जनाब के मोबाइल ने काम करना बंद कर दिया। वे हर बार 10 मिनट रुकने की गुजारिश करते और फोन जल्द ही ठीक होने का भरोसा देते। यह सिलसिला तकरीबन आधे घंटे तक चलता रहा। आखिरकार, हारकर उन्होंने हमसे हाथ मिलाए और हमारा वक्त बर्बाद करने के लिए माफी मांगते हुए चले गए। हमारा टाइम खोटी हुआ, उसकी फ्रस्टेशन तो दिमाग में थी लेकिन परोपकार करने की खुशी भी थी। इस पूरे सिलसिले में जो सबसे अहम बात थी, वह यह कि कैब ड्राइवर का लालच सातवें आसमान पर था। वह बार—बार कह रहा था कि भइया सवेरे 4 बजे से रात 12 बजे तक कार चलाता हूं। जिंदगी हथेली पर लेकर चलता रहता हूं। पूरा बदन दर्द करने लगता है। कार से उतरकर खड़ा होता हूं तो पैर कांपते हैं। उसके बाद बमुश्किल 11 ट्रिप्स का डेली टार्गेट पूरा कर पाता हूं।
पैसा किसी को किस हद तक पागल बना सकता है, इसका यह जीवंत उदाहरण मुझे वाकई चौंका गया! मैंने अबतक हमेशा से अपने नजरिए से ही लोगों को देखा था। मुझे लगता था कि लोग पैसा एक सुकून भरी जिंदगी के लिए कमाते हैं। लेकिन जो कमाई हमारी जिंदगी से सुकून के सारे पल छीन ले, ऐसी कमाई को बांधकर हम कहां ले जाएंगे! क्या हमारे लालच की कोई सीमा नहीं हो सकती है! क्या पर्याप्त जैसे शब्द संग जीने की आदत हम नहीं डाल पाए हैं!
हालांकि, इस सबके ठीक उलट यमुनाबैंक मेट्रो स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करते वक्त इसी किस्से का दूसरा पहलू भी जेहन में आया। मुझे लगा कि ऐसा भी तो हो सकता है कि जिन परिस्थितयों में वो कैब ड्राइवर कमाई कर रहा है, उससे हम वाकिफ ही न हों। इस बात की भी आशंका है कि उसकेे घर की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय हो और उसे किसी पारिवारिक जरूरत को पूरा करने के लिए दिन—रात एक करनी पड़ रही है। इस स्याह पक्ष के सामने आते ही सुनहरे पक्ष की सारी कल्पनाओं ने झट से दम तोड़ दिया। हमने बृजेश से यही बात साझा की। उसने भी हां में हां मिलाई। हम दोनों ने ही मन ही मन माफी मांगी। हकीकत क्या है, यह तो वह कैब ड्राइवर और रब ही जानता है। अगर पहले वाला किस्सा सच है तो फिर हमें अपनी महत्वकांक्षाओं की स्क्रूटनी करने की जरूरत है। दूसरा वाला हिस्सा सच है तो हमें कैब ड्राइवर से पूरी सहानुभूति है और उसकी मदद करके खुशी भी।

Wednesday 30 March 2016

जरा सी संवेदना और थोड़ी सी जलेबी चाहिए एक नजरिया सुधारने को

शाम को घर लौटते वक्त रास्ते में एक जलेबी बेचने वाले भइया ठेला लगाते हैं। जितनी उनकी जलेबियां टेढीं होती हैं, उससे कहीं ज्यादा सीधा और सरल है उनका स्वभाव। मैं अमूमन उनके यहां जलेबी खाता हूं। रोज का ठहराव एक रिश्ता तो बनाता ही है। हमारा भी बन गया है। दुकानदार-ग्राहक का रिश्ता। इस नि:स्वार्थ रिश्ते में जलेबी की चाशनी से भी ज्यादा मिठास है। एक अपरिचित शहर में मेरे परिचय की डायरी में उनका भी नाम दर्ज हो चुका है।

बात बीती शाम की है। ठेला भी था और जलेबियां भी। लेकिन चेहरा वो नहीं था जो हर रोज दिखता था। नए शहर में नया चेहरा देखकर थोड़ा संशय होता है। मन में तरह-तरह के बेजा सवाल घूमने लगते हैं। खैर, मैं हर बार की तरह इस बार भी ठेले पर गया। जलेबी खाई। मिठास भी वही। जलेबी खिलाने वाले का व्यवहार भी वही। लेकिन चेहरा तो वो नहीं!

आखिरकार, रहा नहीं गया। पूछ ही डाला - आप इससे पहले तो कभी दिखे नहीं यहां! आज अचानक! 'जी, सही कह रहे हैं आप। यहां मेरे पापा रोज बैठते हैं। आज उनकी तबीयत जरा नासाज है इसलिए मैं संभाल रहा हूं।', जलेबी वाला बोला। इतना कहते ही खुली किताब की तरह सबकुछ सामने आ गया। एक अच्‍छे पिता की परवरिश का अक्‍स तो दिखना बनता ही था।
उसने बताया कि वह सरकारी नौकरी करना चाहता है और इसलिए एसएससी की तैयारी करने में मशगूल रहता है। एक परीक्षा में 3 नंबर से रह जाने का मलाल भी उसकी बातों में दिखा। लेकिन वो निराशावादी जरा भी नहीं था। उसने तुरंत ही मुस्‍कुराते हुए बोला - फिर कोशिश करेंगे, हो ही जाएगा। उसकी यह बात मुझे छू गई। उसे आशावाद पर जरा भी संदेह न रह जाए, इसलिए मैंने भी उसकी हां में हां मिलाई और चींटी का उदाहरण दिया। मैंने कहा - सही कह रहे हो दोस्‍त। हमें चींटी से सीखना चाहिए। बार बार गिरने के बावजूद कोशिश करती है और मंजिल तक पहुंचती है। कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। उसने पूछा - आप क्‍या करते हो? मैंने मुस्‍कुराकर कहा - संभावनाओं की तलाश।
वैसे भी, मैं निराशावादी लोगों को रत्‍ती भर पसंद नहीं करता। बहस करने की फितरत नहीं है, सो एक मंद मुस्‍कान देकर किनारा कर लेता हूं। बहस के लिए टीवी एंकर्स बैठे हैं। मोटी तनख्‍वाह पर। वे हम लोगों का वक्‍त जाया करने और आंखों की रौशनी कम करने के लिए काफी हैं।
इस किस्‍से को आपसे साझा करने की एक ही वजह है। वह है इससे मिलने वाली सीख। आर्थिक विषमताओं के बीच रहकर भी ईमानदारी से अपना फर्ज निभाकर, आशावादी रहकर हौसले को डिगने न देने में ही हमारा बड़प्‍पन है। अगर पैसा ही छोटे या बड़े होने का पैमाना बनता रहेगा तो हम हर बार दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर होते रहेंगे।
कभी टैक्‍सी ड्राइवर की बेटी को अफसर बनते देख तो कभी चाय वाले के बच्‍चे को प्रधानमंत्री बनते देख। फैसला आपका है। दिमाग आपका है। समझ आपकी है। इरादा आपका है। बदलने की नहीं, सुधरने की जरूरत है। थोड़ी सी संवेदना के साथ। दुनिया देखने का नजरिया खुद-ब-खुद लीक से हटकर बन जाएगा। कोशिश तो करिए।

Wednesday 19 August 2015

नरेंद्र मोदी का अरब दौरा, इशारा किस ओर ?


आपने कभी देखा होगा कि मक्खी पूरे शरीर को छोड़कर केवल जख्म पर ही बैठती
है, चाहे वो कितना भी छोटा क्यों न हो, कुछ ऐसा ही मोदी विरोधियों का हाल
है, जो मोदी जी के बड़े-बड़े कामों में भी छोटा सा नुक्स निकाल कर ही
हुड़दंग करते रहते है, फिर उन्हें इस बात से मतलब नहीं रहता कि उनके इस
हुड़दंग का देश को कितना नुकसान हो सकता है । मोदी जी की अमीरात यात्रा
अपने अन्दर बहुत से अर्थ समेटे हुए है, इसका भारतीय राजनीति,अर्थनीति और विदेश नीति पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है, बशर्ते भारत की अन्दरूनी राजनीति इसके आड़े न आये। अगर हम न देखना चाहे तो अलग बात है, लेकिन यह यात्रा हमारे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है ।
      
मोदी जी की इस यात्रा को मीडिया का पूरा कवरेज मिला, जो कि उनकी सोवियत संघ से निकले हुए देशों की यात्रा को नहीं मिला था, वो यात्रा भी मुस्लिम देशों की थी, लेकिन सऊदी अरब की यात्रा के अलग मायने है । सऊदी अरब सबसे महत्वपूर्ण खाड़ी देश है, इसके साथ अच्छे सम्बन्ध बनाकर मोदी जी दूसरे देशों खाड़ी देशो के साथ भी सम्बन्ध सुधारना चाहते हैं । सऊदी अरब का महत्व इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि एक तरफ तो ये अमरीका का महत्वपूर्ण सहयोगी है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान को मददगार भी । सऊदी अरब और अमरीका
दोनों ही पाकिस्तान को भारी वित्तीय मदद देते है, इसलिए पाकिस्तान से निबटने के लिये हमें अमेरिका के साथ-साथ सऊदी अरब को भी अपने पाले में लाना होगा तभी पाकिस्तान की नापाक हरकतों पर लगाम लगायी जा सकती है । इस यात्रा में मोदी जी ने सऊदी अरब की धरती से ही सऊदी अरब के साथ साँझा बयान जारी करके पाकिस्तान को उसकी हरकतों के लिये कड़ी चेतानवी दी है । गुड तालीबान और बैड तालीबान के लिए भी चेताया है ।

      सऊदी अरब से भारी निवेश का वादा लेकर मोदी जी भारतीय जनता से किये गये अपने वादे पूरे करना चाहते है, क्योंकि वो वादे बिना विदेशी निवेश के सम्भव नहीं हो सकते और उनके पास निवेश के लिए काफी पैसा है । उन्हें भवन निर्माण में विशेषज्ञता हासिल है, जिसका हम फायदा उठा सकते हैं, क्योंकि आने वाले वर्षों में हमें अपनी जनता के लिये करोड़ो घरों का निर्माण करना ही होगा । एक अनुमान के अनुसार हमारे 23 लाख लोग इस देश में निवास करते हैं, जिन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, अगर शीर्ष स्तर पर हमारे सम्बन्ध अच्छे होंगे तो उनकी समस्याओं को हल करना आसान होगा । इस देश में ज्यादातर भारतीय मजदूरी करते हैं और बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भारत भेजते है, जो कि हमें तेल आयात करने के काम आती है । अगर भारत से बाहर बसे भारतीय हमें पैसा न भेजे तो अपने विदेशी मुद्रा भण्डार की हालत आप सोच भी नहीं सकते । इस प्रकार ये लोग महत्वपूर्ण देशसेवा कर रहे हैं, इनकी अनदेखी अच्छी बात नहीं होगी ।
<blockquote class="twitter-tweet" lang="en"><p lang="en" dir="ltr">Electrifying is an understatement to describe the atmosphere at the Dubai Cricket Ground. A big thank you! <a href="http://t.co/S2XUhdaasr">pic.twitter.com/S2XUhdaasr</a></p>&mdash; Narendra Modi (@narendramodi) <a href="https://twitter.com/narendramodi/status/633325617568583680">August 17, 2015</a></blockquote> <script async src="//platform.twitter.com/widgets.js" charset="utf-8"></script>

      सबसे ज्यादा हल्ला मोदी जी के मस्जिद जाने से हुआ है, क्योंकि विरोधियों का कहना है कि मोदी जी टोपी नहीं पहनते, फिर मस्जिद क्यों गये और अपने देश की मस्जिदों में क्यों नहीं जाते ?  आज तक मुझे ये समझ नहीं आया कि टोपी पहनने से आदमी धर्मनिरपेक्ष कैसे हो जाता है ? क्या मुस्लिम समाज से जुड़ने के लिए और उनका साथ पाने के लिये मस्जिद जाना जरूरी है और क्या जो नेता टोपी पहनते हैं, मस्जिद जाते हैं और इफ्तार करते है वही  धर्मनिरपेक्ष है ? क्या धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा यही है ?
         वास्तव में काँग्रेस ने आजादी के पहले से ही तुष्टीकरण को धर्मनिरपेक्षता का नाम दे दिया था और उनकी इसी नीति के कारण देश का बँटवारा हुआ, क्योंकि इसी नीति के कारण नाराज हिन्दु कट्टरवादियों की शरण में चले गए और इससे भयभीत होकर मुस्लिम जिन्नाह की शरण में चल गए । सच्ची धर्मनिरपेक्षता कहती है कि आप अपने धर्म का पालन करों और दूसरो को उनके धर्म का पालन करने दो, न कि दूसरों के धार्मिक रीति रिवाजों में शामिल होकर उन्हें मूर्ख बनाओ । लगभग सारे मुस्लिम इसी बात को मानते हैं, इसलिए वो मन्दिर नहीं जाते, मूर्तिपूजा नहीं करते, तिलक नहीं लगाते और न ही इधर-उधर माथा टेकते फिरते है, क्योंकि वो अपने धर्म का पूरी सच्चायी से पालन करते हैं, इसलिए उन्हें किसी ढकोसले की जरूरत नहीं रहती । मोदी जी अपने धर्म का पूरे समर्पण भाव से पालन करते है और वोटो के लिए कोई दिखावा नहीं करते । अगर धर्मनिरपेक्ष नेताओं की हरकतों की बात की जाए तो इस देश में कोई भी मुस्लिम धर्मनिरपेक्ष नहीं रह जाएगा ।

      मोदी जी ने विदेशी मेजबान का सम्मान करते हुए खूबसूरत मस्जिद का बिना टोपी पहने हुए दौरा किया और बड़ी ध्यान से उसको देखा और समझा । पहली बार मोदी जी मस्जिद गए और वहाँ भी मोदी-मोदी के नारे लगने लगे । इस बात से उनके विरोधियों को सावधान हो जाना चाहिए कि अगर वो भारत में भी मस्जिदों में जाने लगे तो उनका क्या होगा । इसी कारण उनके विरोधी मोदी की मस्जिद यात्रा को लेकर उल्टे-सीधे बयान दे रहे हैं । अजीब बात है, मोदी न जाए तो दिक्कत और जाए तो दिक्कत, क्योंकि दिक्कत तो उनकी छोटी सोच में
छुपी हुई है, जिसे बदलना आसान नहीं है ।
      हम जानते हैं कि आईएस का प्रभाव मुस्लिम देशों में बढ़ता जा रहा है और सभी मुस्लिम देश इससे भयभीत हैं । आईएस आगे चलकर हमारे लिए भी मुसीबतें खड़ी कर सकता है । आईएस को रोकने के लिए साँझी रणनीति बनाने में यह दौरा महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है, क्योंकि आईएस पाकिस्तान तक आ चुका है, इसलिए अब इससे लड़ने के लिये तैयारी करनी ही होगी । दाऊद पर शिकंजा कसने के लिए भी हमें इस देश के सहयोग कर जरूरत है, क्योंकि उसके काले कारोबार का बड़ा हिस्सा इसी देश में है ।
      मोदी जी के भाषण समारोह में हजारों की संख्या में मुस्लिमों ने भाग लिया, जिसका प्रभाव भारतीय मुस्लिम समाज पर पड़ना निश्चित है । वैसे भी देश की मुस्लिम राजनीति में औवेशी नाम की उठ रही आँधी ने कथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं की नींद उड़ा रखी है और अगर मोदी भी थोड़े से भी मुस्लिम वोट ले जातें है तो इन नेताओं को अपनी राजनीति चलाने के लिये दूसरे ग्रह पर जाना होगा । औवेशी स्पष्ट और तर्कपूर्ण बातें बोलते है, जिससे वो मुस्लिम समाज में काफी लोकप्रिय होते जा रहे हैं, कथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं की दोगली बातों से दुखी मुसलमान अब उनकी ओर रूख कर रहे हैं । यह बात भारतीय राजनीति में होने वाले बदलावों की ओर संकेत कर रही है ।
    जितने प्यार और आदर से सऊदी अरब के शहजादे ने मोदी जी का स्वागत किया है, वो भारत के बढ़ रहे प्रभाव की ओर एक संकेत है । सारे प्रोटोकोल तोड़कर उन्होंने अपने पाँचो भाईयों के साथ एयरपोर्ट पर मोदी जी का स्वागत किया और मोदी जी के साथ मस्जिद भी गये, जो कि उनके आगमन पर आम जनता के लिये बन्द कर दी गई थी । जितना सम्मान हमारे प्रधानमंत्री को मिला है वो हमारे सम्बन्धों को न केवल सऊदी अरब के साथ बल्कि अन्य खाड़ी देशो के साथ भी नए रिश्तों को जन्म देगा और भारत को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी
पहचान दोबारा बनाने में मददगार साबित होगा ।

Friday 22 May 2015

दैनिक दबंग दुनिया में नाचीज के लेख को संपादकीय पृष्ठ पर मिली जगह



आज मध्य प्रदेश और मुंबई के प्रमुख अखबारों में एक दैनिक दबंग दुनिया में नाचीज के लेख को संपादकीय पृष्ठ पर मिली जगह. पूरे लेख के लिए लिंक पर जाएं-  http://epaper.dabangdunia.co/NewsDetail.aspx?storyid=IND-6-45823692&date=2015-05-22&pageid=1

Tuesday 12 May 2015

मोदी नीति से आएंगे डाकियों के अच्छे दिन !

पिछले कुछ वर्षों में मोबाइल, इंटरनेट द्वारा मैसेज, फेसबुक और व्हाट्सऐप के प्रचलन के साथ ही पोस्ट ऑफिस में नियुक्त डाकियों की भूमिका लगभग  नगण्य सी हो गई थी. आधुनिक जमाने में अब कौन किसी को पत्र लिखता है भला.  सरकारी और अर्धसरकारी कार्यालयों में भी लेटर और मैसेज मेल के द्वारा ही  भेजे जाने लगे हैं और उन्हें अधिकृत मान्यता भी मिल रही है. ऐसे में  डाकियों का अस्तित्व अप्रासंगिक सा हो गया है. वे सिर्फ कुछ सरकारी  पत्रों, रजिस्ट्री और पार्सलों के निमित मात्र रह गए थे. लेकिन अब ऐसा  लगता है कि अगर केंद्र सरकार की नयी योजना कारगर सिद्ध हुई तो निश्चित ही  इनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी.

केंद्र सरकार ने डाक विभाग में पेमेंट बैंक शुरू करने की योजना बनाई है  और अगर सब कुछ ठीकठाक रहा तो इसी वर्ष अगस्त या सितम्बर महीने से ये  योजना शुरू भी हो सकती है. इसके अन्तर्गत बैंक बनने के बाद डाकियों को  उनकी नयी भूमिका के तहत एक मशीन दी जाएगी. जिसके द्वारा वे गांव-गांव  जाकर ग्रामीणों को बैंकिंग सुविधाएँ देंगे. वे पोस्ट ऑफिस के ग्रामीण  खाता धारकों को उनकी आवश्यकता के अनुसार रुपयों का भुगतान करने और उनके  पैसे जमा करने का दायित्व निभाएंगे. वे उन्हें किसी प्रकार के कर्ज की सुविधा नहीं देंगे. उनकी ये भूमिका उन गावों के लिए अधिक लाभप्रद होगी जहाँ डाक खाने नहीं है.

केंद्र सरकार के वित्तीय समावेशन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए ये योजना  कारगर सिद्ध हो सकती है. ये डाकिये प्रतिदिन गावों में जाकर उनके पास  उपलब्ध मशीनों के माध्यम से ग्रामीणों के खातों का संचालन करेंगे.
आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग एक लाख पचपन हज़ार डाक घर हैं जिसमें से  इनकी बड़ी संख्या ग्रामीण इलाकों में ही है. लगभग 90 प्रतिशत यानि एक लाख  चालीस हज़ार डाकघर गावों में ही है. सरकार द्वारा लाया जा रहा पेमेंट  बैंक भारतीय डाक विभाग के सहयोगी संस्था के रूप में ही काम करेगी और पोस्ट मैन की नई भूमिका यहीं से शुरू होगी.

यही नहीं, इन डाकियों को कुछ और भी दायित्व दिए जाने की योजना है. मसलन,  भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान ग्रामीणों को अच्छे बीज और अन्य तकनीकी  जानकारी उन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी इन्हें देने की सोच रहा है. डाक घर  द्वारा दी जाने वाली अन्य सुविधाओं के बारे में ग्रामीणों को सूचना देना,  उन्हें समझाना भी इनके कार्य का हिस्सा होगा.

निश्चय ही सरकार की ये सोच ग्रामीणों के लिए महत्वपूर्ण होगी क्योंकि  सरकार द्वारा जो भी नयी योजनाएं लाई जा रही हैं वे बैंकों के माध्यम से  ही लागू हो रही हैं. अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे गांव हैं जहाँ आज भी
बैंकिंग सुविधाएँ नहीं हैं. ग्रामीणों को मीलों चलकर अपने बैंक जाना होता  है और कुछ हद तक ये सरकारी बैंक उनसे हमराह भी हो पाते यानि वे उनकी  जरूरतों को पूरा करने में समर्थ नहीं हो पाते. ऐसे में डाकियों के माध्यम  से घर-घर मिलने वाली ये सुविधा उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति को बदलने  में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. केंद्र सरकार की डाकघर के माध्यम से  डाकियों के रोल को बदलने की सोच अगर यथार्थ के धरातल पर सही साबित हुई तो  निश्चय ही डाकियों के आर्थिक और सामाजिक हालात बदलेंगे. उनके भी अच्छे  दिन आएंगे. इससे वे मोटिवेट होंगे और उनमें नई ऊर्जा का संचार होगा.