Friday, 22 May 2015
Tuesday, 12 May 2015
मोदी नीति से आएंगे डाकियों के अच्छे दिन !
पिछले कुछ वर्षों में मोबाइल, इंटरनेट द्वारा मैसेज, फेसबुक और व्हाट्सऐप
के प्रचलन के साथ ही पोस्ट ऑफिस में नियुक्त डाकियों की भूमिका लगभग
नगण्य सी हो गई थी. आधुनिक जमाने में अब कौन किसी को पत्र लिखता है भला.
सरकारी और अर्धसरकारी कार्यालयों में भी लेटर और मैसेज मेल के द्वारा ही
भेजे जाने लगे हैं और उन्हें अधिकृत मान्यता भी मिल रही है. ऐसे में
डाकियों का अस्तित्व अप्रासंगिक सा हो गया है. वे सिर्फ कुछ सरकारी
पत्रों, रजिस्ट्री और पार्सलों के निमित मात्र रह गए थे. लेकिन अब ऐसा
लगता है कि अगर केंद्र सरकार की नयी योजना कारगर सिद्ध हुई तो निश्चित ही
इनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी.
केंद्र सरकार ने डाक विभाग में पेमेंट बैंक शुरू करने की योजना बनाई है और अगर सब कुछ ठीकठाक रहा तो इसी वर्ष अगस्त या सितम्बर महीने से ये योजना शुरू भी हो सकती है. इसके अन्तर्गत बैंक बनने के बाद डाकियों को उनकी नयी भूमिका के तहत एक मशीन दी जाएगी. जिसके द्वारा वे गांव-गांव जाकर ग्रामीणों को बैंकिंग सुविधाएँ देंगे. वे पोस्ट ऑफिस के ग्रामीण खाता धारकों को उनकी आवश्यकता के अनुसार रुपयों का भुगतान करने और उनके पैसे जमा करने का दायित्व निभाएंगे. वे उन्हें किसी प्रकार के कर्ज की सुविधा नहीं देंगे. उनकी ये भूमिका उन गावों के लिए अधिक लाभप्रद होगी जहाँ डाक खाने नहीं है.
केंद्र सरकार के वित्तीय समावेशन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए ये योजना कारगर सिद्ध हो सकती है. ये डाकिये प्रतिदिन गावों में जाकर उनके पास उपलब्ध मशीनों के माध्यम से ग्रामीणों के खातों का संचालन करेंगे.
आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग एक लाख पचपन हज़ार डाक घर हैं जिसमें से इनकी बड़ी संख्या ग्रामीण इलाकों में ही है. लगभग 90 प्रतिशत यानि एक लाख चालीस हज़ार डाकघर गावों में ही है. सरकार द्वारा लाया जा रहा पेमेंट बैंक भारतीय डाक विभाग के सहयोगी संस्था के रूप में ही काम करेगी और पोस्ट मैन की नई भूमिका यहीं से शुरू होगी.
यही नहीं, इन डाकियों को कुछ और भी दायित्व दिए जाने की योजना है. मसलन, भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान ग्रामीणों को अच्छे बीज और अन्य तकनीकी जानकारी उन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी इन्हें देने की सोच रहा है. डाक घर द्वारा दी जाने वाली अन्य सुविधाओं के बारे में ग्रामीणों को सूचना देना, उन्हें समझाना भी इनके कार्य का हिस्सा होगा.
निश्चय ही सरकार की ये सोच ग्रामीणों के लिए महत्वपूर्ण होगी क्योंकि सरकार द्वारा जो भी नयी योजनाएं लाई जा रही हैं वे बैंकों के माध्यम से ही लागू हो रही हैं. अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे गांव हैं जहाँ आज भी
बैंकिंग सुविधाएँ नहीं हैं. ग्रामीणों को मीलों चलकर अपने बैंक जाना होता है और कुछ हद तक ये सरकारी बैंक उनसे हमराह भी हो पाते यानि वे उनकी जरूरतों को पूरा करने में समर्थ नहीं हो पाते. ऐसे में डाकियों के माध्यम से घर-घर मिलने वाली ये सुविधा उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. केंद्र सरकार की डाकघर के माध्यम से डाकियों के रोल को बदलने की सोच अगर यथार्थ के धरातल पर सही साबित हुई तो निश्चय ही डाकियों के आर्थिक और सामाजिक हालात बदलेंगे. उनके भी अच्छे दिन आएंगे. इससे वे मोटिवेट होंगे और उनमें नई ऊर्जा का संचार होगा.
केंद्र सरकार ने डाक विभाग में पेमेंट बैंक शुरू करने की योजना बनाई है और अगर सब कुछ ठीकठाक रहा तो इसी वर्ष अगस्त या सितम्बर महीने से ये योजना शुरू भी हो सकती है. इसके अन्तर्गत बैंक बनने के बाद डाकियों को उनकी नयी भूमिका के तहत एक मशीन दी जाएगी. जिसके द्वारा वे गांव-गांव जाकर ग्रामीणों को बैंकिंग सुविधाएँ देंगे. वे पोस्ट ऑफिस के ग्रामीण खाता धारकों को उनकी आवश्यकता के अनुसार रुपयों का भुगतान करने और उनके पैसे जमा करने का दायित्व निभाएंगे. वे उन्हें किसी प्रकार के कर्ज की सुविधा नहीं देंगे. उनकी ये भूमिका उन गावों के लिए अधिक लाभप्रद होगी जहाँ डाक खाने नहीं है.
केंद्र सरकार के वित्तीय समावेशन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए ये योजना कारगर सिद्ध हो सकती है. ये डाकिये प्रतिदिन गावों में जाकर उनके पास उपलब्ध मशीनों के माध्यम से ग्रामीणों के खातों का संचालन करेंगे.
आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग एक लाख पचपन हज़ार डाक घर हैं जिसमें से इनकी बड़ी संख्या ग्रामीण इलाकों में ही है. लगभग 90 प्रतिशत यानि एक लाख चालीस हज़ार डाकघर गावों में ही है. सरकार द्वारा लाया जा रहा पेमेंट बैंक भारतीय डाक विभाग के सहयोगी संस्था के रूप में ही काम करेगी और पोस्ट मैन की नई भूमिका यहीं से शुरू होगी.
यही नहीं, इन डाकियों को कुछ और भी दायित्व दिए जाने की योजना है. मसलन, भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान ग्रामीणों को अच्छे बीज और अन्य तकनीकी जानकारी उन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी इन्हें देने की सोच रहा है. डाक घर द्वारा दी जाने वाली अन्य सुविधाओं के बारे में ग्रामीणों को सूचना देना, उन्हें समझाना भी इनके कार्य का हिस्सा होगा.
निश्चय ही सरकार की ये सोच ग्रामीणों के लिए महत्वपूर्ण होगी क्योंकि सरकार द्वारा जो भी नयी योजनाएं लाई जा रही हैं वे बैंकों के माध्यम से ही लागू हो रही हैं. अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे गांव हैं जहाँ आज भी
बैंकिंग सुविधाएँ नहीं हैं. ग्रामीणों को मीलों चलकर अपने बैंक जाना होता है और कुछ हद तक ये सरकारी बैंक उनसे हमराह भी हो पाते यानि वे उनकी जरूरतों को पूरा करने में समर्थ नहीं हो पाते. ऐसे में डाकियों के माध्यम से घर-घर मिलने वाली ये सुविधा उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. केंद्र सरकार की डाकघर के माध्यम से डाकियों के रोल को बदलने की सोच अगर यथार्थ के धरातल पर सही साबित हुई तो निश्चय ही डाकियों के आर्थिक और सामाजिक हालात बदलेंगे. उनके भी अच्छे दिन आएंगे. इससे वे मोटिवेट होंगे और उनमें नई ऊर्जा का संचार होगा.
Sunday, 10 May 2015
मोदी जी, हम तो आपके भरोसे ही हैं. देख लीजिएगा.
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में पीएम मोदी ने कहा, कंधे पर बंदूक नहीं बल्कि हल होने से ही विकास होगा और इससे हर कोई विकास की मुख्य धारा से जुड़ सकेगा. हिंसा का कोई भविष्य नहीं है. भविष्य सिर्फ शांतिपूर्ण कार्यों में है. नक्सल आंदोलन के जन्मस्थल नक्सलबाड़ी ने पहले ही हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है. निराश न हों, मौत का तांडव खत्म होगा. प्रधानमंत्री ने बागियों से कहा कि कुछ दिन के लिए अपनी बंदूकें रख दें और उनकी हिंसा से जो परिवार प्रभावित हुए हैं, उनसे मिलें. यह अनुभव आपको आपका मन बदलने पर मजबूर कर देगा और आपको हिंसा का रास्ता छोडऩे की प्रेरणा देगा. कहा कि लोकतंत्र में हिंसा का कोई भविष्य नहीं है. कंधे पर हल से विकास हो सकता है, बंदूक से नहीं. मोदी ने कहा कि मौत का तांडव खत्म होगा. लक्ष्य हासिल करने के लिए कभी जीवन को सफलता और असफलता के तराजू में नहीं तोलना चाहिए. विफलताओं से हमें सीखना चाहिए. सफलता का हिसाब लगाने से निराशा आती है. मैं सफलता के लक्ष्य से काम नहीं करता. विफलता और सफलता आती रहती है.
पहली नजर में तो किसी प्रधान सेवक की ये बातें अच्छी लगती हैं. चलो एक अरसे बाद कोई तो ऐसा प्रधानमंत्री मिला जो किसी मुखिया की जिम्मेदारियों को बखूबी समझता है. लेकिन गंभीरता से सोचने पर मैंने यह पाया कि मोदी जी ने यह सब आखिर किससे कहा है? उनसे जिनके लिए दूसरों की जान की कोई वैल्यू नहीं? या फिर उनसे जो अपनी मांगों को लेकर अरसे से जिद्दी बने हुए हैं? क्या मोदी जी को वाकई यकीन है कि इन बातों के जरिए उन्होंने नक्सलियों को जो संदेश दिया है, वे उसे जायज मानेंगे? क्या वे भविष्य में हथियार नहीं उठाएंगे? मोदी जी आपको यकीन होगा लेकिन मुझे रत्ती भर यकीन नहीं. बदलते वे हैं जो बदलने की चाहत रखते हैं. जिनमें तनिक भी इंसानियत बची होती है. लेकिन नक्सलियों में न तो जज्बात हैं और न ही इंसानियत. फिर वे भला क्यों किसी की बात मानने लगे? और वैसे भी, अब तक नहीं माने तो आगे क्या मानेंगे?
बीते लोक सभा चुनाव की बात है. अप्रैल 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान आपने ही कहा था कि देश को चलाने के लिए 56 इंच का सीना चाहिए. तो फिर नक्सलियों को दिए गये संदेश में इतनी बेबसी आखिर क्यों? नक्सलियों को जज्बाती पाठ पढ़ाने का क्या फायदा? सुधार की गुंजाइश वहीं होती हैं जहां चाह हो. लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं. आप प्रधानमंत्री हैं. चेतावनी दीजिए. उन्हें इस बात का भान कराइये कि अगर तुम हथियार उठा सकते हो तो हमने भी चूडिय़ां नहीं पहन रखीं. मोदी जी, कम से कम आपसे तो यह उम्मीद की ही जा सकती है. आंतरिक लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की जरूरत है. वर्ना कहीं भविष्य में ऐसा कहने को न हो जाए कि घर के भेदी ने ही लंका ढा दी. इस भेडिय़ों से बातचीत का दौर नहीं चलना चाहिए. इन्हें अंतिम चेतावनी देनी चाहिए. लेकिन छत्तीसगढ़ यात्रा पर आपने ऐसा कुछ भी नहीं किया. निराशा हुई. लेकिन फिर भी, हम देशवासियों को अब भी आपसे उम्मीदे हैं.
और हां, आपने नक्सलियों के गढ़ में जाकर जिस तरह बच्चों के सवालों का जवाब दिया, वह एक जिगर वाला ही कर सकता है. छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार हुआ कि किसी प्रधानमंत्री ने वहां के बच्चों के साथ मनोरंजन किया. उनसे घुले-मिले और उनकी सवालों का कोई राजनीतिक नहीं, बल्कि आदमियतता से जवाब दिया.
आपने जीवन की सफलता और मेहनत से जुड़े ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया, जो साफ तौर पर लग रहा था कि ये दिल की आवाज़ है. आपका यह सब कहना कि जो अपनों के लिए जीते हैं, उन्हें थकान नहीं होती. तनाव काम करने से नहीं होता, तनाव काम नहीं करने से होता है. मैं काम करने के घंटे नहीं गिनता आदि दर्शाता है कि हमारे पीएम के इरादे मजबूत हैं. लेकिन आज लगा कि मजबूती में मायूसी की नमी जाकर छिप गई है. देख लीजिएगा. हम तो आपके भरोसे ही हैं, मोदी जी.
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