दिल्ली में आयोजित 'द लग्जरी फेस्टिवल' का आखिरी दिन था और अपना वीकली आॅफ भी। निकल पड़े कुछ नया देखने। पुरानी नजर से। साथ मिला आजतक में कार्यरत हमारे साथी बृजेश बाबू का। वापसी के दौरान आईटीओ मेट्रो स्टेशन के पास हमने पानी की बोतल खरीदी और दो घूंट पानी गले के नीचे उतारा ही था कि तभी कैब वाले एक जनाब आ टपके। शायद दूर से तक रहे थे। उन्हें इस बात का साफ अंदाजा था कि बंदे कैब सर्विस लेते ही होंगे। हमारे नजदीक आए और बड़े कॉन्फिडेंस से अपने अकाउंट से एक ट्रिप रजिस्टर करने की गुजारिश की। बोले — 'भाई प्लीज एक ट्रिप ऐसे ही रजिस्टर कर दीजिए। मेरा 11 ट्रिप्स का दिनभर का कोटा पूरा हो जाएगा। मेरा टारगेट पूरा हो जाएगा और कैब कंपनी इसके एवज में 3 हजार रुपये हमारें अकाउंट में डाल देगी। सवेरे 4 बजे से गाड़ी घर से लेकर निकला हूं और रात के 8 बजने को हैं। इस वक्त तक महज 10 बुकिंग्स ही हो पाई हैं। आप ट्रिप रजिस्टर कर दीजिए, मैं आगे तीन—चार किलोमीटर तक गाड़ी ले जाकर घर पर खड़ी कर दूंगा।' हम लोग भी ठहरे कमजोर दिल वाले दयावान टाइप 'गधे'। हामी भर दी।
बृजेश बाबू ने अपने मोबाइल से तुरंत ही ट्रिप रजिस्टर कर दी। कैब वाले भाईसाहब का टार्गेट पूरा हो गया। टार्गेट पूरा होने का मैसेज उनके मोबाइल पर टूं टूं जैसे ही किया, उन्होंने हमारी तारीफ के पुल बांध दिए। कुछ ही मिनटों में दुनियाभर की सारी दुआएं दे डालीं। हमारे मन के पीछे वाले समंदर में फील गुड वाला इमोजी तैरने लगा। लगा कि चलो यार किसी के तो काम आ गए। अपना कुछ गया नहीं और दूसरे का भला हो गया। लेकिन उस वक्त तक हमें नहीं मालूम था कि हमारा यह परोपकार हमपर भारी पड़ने वाला है। वे जनाब इतने खुश थे कि उन्होंने हमें नजदीकी मेट्रो स्टेशन तक कैब से छोड़ने का आॅफर दिया, वो भी बिना पैसे लिए। गर्मी तो बेइंतहा थी ही, तो ऐसे में एसी कार में कुछ पल ही सही, बैठने को कौन नहीं बेताब होगा भला! हमने भी हामी भर दी और चल दिए।
लक्ष्मीनगर मेट्रो स्टेशन पर उतरने से कुछ पल पहले ही कैब वाले ड्राइवर साब ने एक बार और गुजारिश की। इस बार उन्होंने मुझसे अपने मोबाइल से एक और ट्रिप रजिस्टर करने को कहा। बोले — मेरा 3 हजार वाला तो टार्गेट पूरा हो ही गया है। लेकिन अगर आप भी एक ट्रिप रजिस्टर कर देंगे तो मुझे 500 रुपये बोनस में मिलेंगे! हमने भी हां कह दिया। लेकिन इस बीच उन जनाब के मोबाइल ने काम करना बंद कर दिया। वे हर बार 10 मिनट रुकने की गुजारिश करते और फोन जल्द ही ठीक होने का भरोसा देते। यह सिलसिला तकरीबन आधे घंटे तक चलता रहा। आखिरकार, हारकर उन्होंने हमसे हाथ मिलाए और हमारा वक्त बर्बाद करने के लिए माफी मांगते हुए चले गए। हमारा टाइम खोटी हुआ, उसकी फ्रस्टेशन तो दिमाग में थी लेकिन परोपकार करने की खुशी भी थी। इस पूरे सिलसिले में जो सबसे अहम बात थी, वह यह कि कैब ड्राइवर का लालच सातवें आसमान पर था। वह बार—बार कह रहा था कि भइया सवेरे 4 बजे से रात 12 बजे तक कार चलाता हूं। जिंदगी हथेली पर लेकर चलता रहता हूं। पूरा बदन दर्द करने लगता है। कार से उतरकर खड़ा होता हूं तो पैर कांपते हैं। उसके बाद बमुश्किल 11 ट्रिप्स का डेली टार्गेट पूरा कर पाता हूं।
पैसा किसी को किस हद तक पागल बना सकता है, इसका यह जीवंत उदाहरण मुझे वाकई चौंका गया! मैंने अबतक हमेशा से अपने नजरिए से ही लोगों को देखा था। मुझे लगता था कि लोग पैसा एक सुकून भरी जिंदगी के लिए कमाते हैं। लेकिन जो कमाई हमारी जिंदगी से सुकून के सारे पल छीन ले, ऐसी कमाई को बांधकर हम कहां ले जाएंगे! क्या हमारे लालच की कोई सीमा नहीं हो सकती है! क्या पर्याप्त जैसे शब्द संग जीने की आदत हम नहीं डाल पाए हैं!
हालांकि, इस सबके ठीक उलट यमुनाबैंक मेट्रो स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार करते वक्त इसी किस्से का दूसरा पहलू भी जेहन में आया। मुझे लगा कि ऐसा भी तो हो सकता है कि जिन परिस्थितयों में वो कैब ड्राइवर कमाई कर रहा है, उससे हम वाकिफ ही न हों। इस बात की भी आशंका है कि उसकेे घर की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय हो और उसे किसी पारिवारिक जरूरत को पूरा करने के लिए दिन—रात एक करनी पड़ रही है। इस स्याह पक्ष के सामने आते ही सुनहरे पक्ष की सारी कल्पनाओं ने झट से दम तोड़ दिया। हमने बृजेश से यही बात साझा की। उसने भी हां में हां मिलाई। हम दोनों ने ही मन ही मन माफी मांगी। हकीकत क्या है, यह तो वह कैब ड्राइवर और रब ही जानता है। अगर पहले वाला किस्सा सच है तो फिर हमें अपनी महत्वकांक्षाओं की स्क्रूटनी करने की जरूरत है। दूसरा वाला हिस्सा सच है तो हमें कैब ड्राइवर से पूरी सहानुभूति है और उसकी मदद करके खुशी भी।